ललित नवनीत सुं
*ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये*
ललित नवनीत , हाँ री तृषित प्रियतम की सकल रस लालसाएँ , ललित श्रृंगार, ललित नवनीत से ही पूर्ण हो सकती हैं। यह ललित नवनीत, ललित श्रृंगार , सम्पूर्ण लालित्य श्रीप्रिया के हृदय से ही झरित हो रहा है। जैसे जैसे प्रियतम की तृषाएँ गाढ होती जाती हैं, त्यों त्यों प्यारी जु का यह ललित अनुराग , ललित वर्षण और और ललित, और और मधुर होता जाता है। श्रृंगार कोमल कोमल होता जाता है, वर्धित होता जाता है।
हे प्यारी *ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये* अपने इस ललित अनुराग की चाशनी में लपेट लपेट, प्रेम केलि रूपेण मधुर मधुर व्यंजन श्रीप्रियतम को पवाइये। अपनी कोमलता से, अपनी सरसता से , अपने श्रृंगार से प्रियतम के क्षुधित , तृषित हृदय को रसमयता प्रदान कीजिये। आप ही तृषातुर प्रियतम को अपने अनुराग में रंग कर , इस ललित नवनीत से पोषण करने वाली हो। हे लालित्य वर्षणी ! हे मधुरे ! हे नवनीता आपके रसवर्षण से , आपके श्रृंगार की नवल नवल सुगन्ध से ही , श्रीप्रियतम की लालसाएँ वर्धित होती जा रही हैं, उसी के अनुरूप आपकी सुख प्रदायनी लालसाएँ भी ललित , ललित, मधुर अनुरंजित होती जा रही हैं।
हे प्यारी ! हे रसवर्षणी ! हे मदलोचने ! *ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये*
*ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये*
*ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये*
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