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*प्रेम हिंडोरा 4*
श्रीप्रिया बहुत समय से मौन है, भीतर प्रियतम सँग ही मूक वार्ता हो रही है जिसे सखियाँ मंजरियाँ उनके हाव भाव से जानने का प्रयत्न कर रही हैं। मूक वाणी है पर हृदय भीतर कोई आह्लाद हो जैसे, प्रियतम की किसी मधुर स्मृति में को ही जी रही हों जैसे। सहसा उनकी दृष्टि एक मयूर पिछ पर पड़ती है। प्यारी जु उस मयूर पिछ को उठाती हुई बाहर उपवन की ओर चरण धरती है।
मयूर पिछ कभी कपोलों से छूने पर प्रसन्नतावत खिलखिला देती है, जैसे प्रियतम का स्पर्श ही कपोलों पर अनुभव करती है। कभी मयूर पिछ को हृदय से लगा लेती है। पुनः पुनः उसे निहारती है, जैसे प्रियतम सँग मूक वार्ता हो रही है अभी। हृदय से हृदय का प्रेम स्पंदन। मंजरियाँ स्वामिनी की इस भाव मुद्रा को निहारती हुई उनके पीछे पीछे चल रही हैं।
प्यारी जु इस मयूर पिछ को हिंडोरे पर विराजमान कर स्वयम हिंडोरे को धीरे धीरे झूला रही है।जैसे वह मयूर पिछ नहीं बल्कि श्यामसुंदर ही हैं।पुनः पुनः निहारती , पुनः पुनः मुस्कुराती हुई, हिंडोरे को झूला रही है, भीतर हृदय में प्रियतम सँग ही प्रेम हिंडोरे में विराजमान है।उपवन में हर ओर सौंदर्य, मधुरता बिखरती जा रही है। इतने में एक मयूर मयूरी प्यारी जु के पास आ जाते हैं। मयूर अपने पँख फैलाकर नृत्य करने लगता है तथा मयूरी उसे देख देख उन्मादित हुई जा रही है।जैसे ही प्यारी जु उस मयूर का मधुर मधुर प्रेमालाप सुनती है, हिंडोरे से उठ मयूरों की ओर भागती है। मयूर नाचते हुए दूर निकलने लगते हैं।
इतने में श्यामसुंदर प्रियतम अपनी प्राणा को निहारते निहारते हिंडोरे पर विराजमान हो जाते हैं और उस मयूर पिछ को अपनी पाग में धारण कर लेते हैं।हिंडोरे पर श्रीप्रिया का स्पर्श, उनकी करावलियों की सुगंध उन्हें उन्मादित करती है। श्रीप्रिया के नेत्र दूर तक मयूर मयूरी का पीछा करते हुए पुनः हिंडोरे पर निहारते हैं तथा अपने प्रियतम को वहाँ मन्द मन्द मुस्कुराते हुए देख वहीं स्थिर होने लगते हैं।अब इन प्रेम मयूर मयूरी के नेत्रों का मधुर खेल आरम्भ हो चुका है , जिसे निहार निहार मञ्जरी किंकरियों के हृदय फूल रहे हैं।
जय जय राधेश्याम !!
जय जय श्रीप्रेमोत्सव धाम !!
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