श्रीमहामन्त्र में निभृत

*श्रीमहामन्त्र युगल सुख में निभृत पौढ़ाई*

  *हरे कृष्ण*
 
श्रीकृष्ण के रस लोलुप्त हिय के ताप को हरण करने वाली, हे कृष्ण ताप हरणी ,अपने प्रियतम के हिय ताप का हरण करो स्वामिनी

*हरे कृष्ण*

 हे हरे ! हे राधिके ! आप श्रीप्रियतम को सुख सेज का विलास प्रदान करो ,

*कृष्ण कृष्ण*

 हे रसदायिनी ! श्रीकृष्ण के समस्त सुखों का सार आप हो। श्रीकृष्ण सुखकारिणी , श्रीकृष्ण हिय आह्लादिनी , निभृत रस विस्तारिणी ! आपका रोम रोम कृष्ण मई है। आपके रोम रोम में प्रियतमके सुख का ही विलास है, हृदय मन्दिर की सुख सेज पर प्रियतम कृष्ण , श्यामसुंदर संग रस विलास करो

*हरे हरे*

हे हरिभामिनी ! हे पिय उरहरणी ! आपके चंचल नेत्रों का विलास प्रियतम के हृदय का हरण करने वाला है। उनके समस्त सुखों का विस्तार करने वाली हे राधिके !

*हरे राम*

 हे हरे , प्रियतम को रमण प्रदान करो

*हरे राम*

हे रमणे ! हे केलि सुखवर्षिणी ! प्रियतम की समस्त रस आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाली हे पूर्णे ! हे रमणे !

*राम राम*

प्रियतम की समस्त सुख लालसाएँ, सुख सेज की पौढ़ाई, समस्त निभृत सुख , रमण रमण , हे रमणे !

*हरे हरे*

हे हरणी ! हे अनुपमे ! हरण करो हरण करो, समस्त हिय ताप हरण करो। हे झरणी ! रस वर्षिणी ! हे उमगिनी ! हरे हरे

 जयजय श्रीश्यामाश्याम !!

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