वृन्दावन रस अनुराग
हरिहौं दीजौ वृन्दावन अनुराग
नाम टेरत दृगन बहैं निशिबासर कबहुँ ऐसो होय भाग
हा हा नाथ मोह मत्सर रहै घेरत हिय भजन न लाग
कबहुँ नाम रस पिये हिय भीजै मेरो बुझत वासना आग
कबहुँ हरि चरणन लगै प्यारे करै बाँवरी विषय त्याग
भजन की बात न सुहावै कबहुँ ज्यों जल बहती झाग
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