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प्रेम हिंडोरा 10*
मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई, उमगती हुई, लहराती हुई, नाचती हुई, हर्षिणी, मोरी किशोरी ,प्रसन्ना, उज्ज्वला , मोरी भोरी स्वामिनी दौड़ती हुई जा रही है। निकुञ्ज भवन के श्रृंगार कक्ष से उपवन की ओर, मदमाती सी हिरणी, चँचला, दामिनी सी कौंध रही है। श्रीप्रिया जु की ओढ़नी लहरा रही है ।ओढ़नी भी आज स्वामिनी जु की भांति नृत्य कर रही है।श्रृंगारित कर रही है अपनी कोमला को।
श्रीस्वामिनी नवयौवना रसीली प्रियाजु अपनी लहराती हुई ओढ़नी को पुनः पुनः समेटती है। ओढ़नी भी कहाँ यह तो प्रियतम श्यामसुन्दर ही अपनी प्रिया जु को आलिंगित, श्रृंगारित कर रहे हैं। श्रीप्रिया जु के वस्त्र आभूषणों में प्रियतम ही तो समाये हुए हैं। प्रिया जु हिंडोरे पर विराजित श्यामसुन्दर को देख मुस्कुरा रही हैं, कुछ लजा रही हैं, अपनी ओढ़नी का एक सिरा लेकर होंठो में दबा रही है। प्रियतम श्यामसुन्दर के पुकारने पर स्वामिनी उनके साथ हिंडोरे पर विराज जाती हैं।
परन्तु आज प्रिया जु चँचला हुई जा रही हैं।हिंडोरे से उठ पीछे की ओर चली जाती हैं और प्रियतम को झुलाने लगती हैं। अपने प्रियतम को क्षण क्षण प्रेम हिंडोरे की सेवा देना ही प्रिया जु का सुख है। धीरे धीरे हिंडोरा हिल रहा है और दोनो के नेत्र परस्पर उलझे हुए हैं। हृदय से हृदय की मूक वार्ता हो रही है, स्वामिनी जु प्रसन्न हो रही हैं। प्रियतम की बात सुन लजा रही हैं। लजाते हुए नेत्रों को झुका लेती है। प्रियतम प्रिया जु का हाथ पकड़ पुनः हिंडोरे पर सँग बिठा लेते हैं। श्रीप्रियतम स्वामिनी जु के हाथ से ओढ़नी की कोर पकड़ लेते हैं तथा अपने ऊपर खींच लेते हैं। यह ओढ़नी आज प्रियाप्रियतम का सुख बनी हुई है जिसके भीतर दोनों आलिंगित हुए प्रेम हिंडोरे में झूल रहे हैं।धीरे धीरे प्रेम हिंडोरा झूल रहा है जिसमें प्रिया प्रियतम दोनो को परस्पर सुख देते हुए निहार रहे हैं। प्रियतम श्रीस्वामिनी जु की उज्ज्वल , मधुर मुसकान की बलिहारी ले रहे हैं, श्रीनिकुंज का एक एक कण स्वामिनी जु की प्रसन्नता से प्रसन्न हो आह्लादित हो रहा है। मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई, मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई........
जय जय श्रीश्यामाश्याम !!
जय जय श्रीवृन्दावनधाम !!
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