माधुरी कुमुद कली
*माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*
सम्पूर्ण माधुर्य , सम्पूर्ण लालित्य भरित श्रीप्रिया , रसिकनी कुमुदिनी रसभामिनी विराज रही हैं। इस रस भरित , उमगित कुमुदिनी को विलसने की सम्पूर्ण कलाएँ आवें री। सम्पूर्ण रस पण्डिते , श्रीप्रिया जु। कोक कला निपुणे , अपने सम्पूर्ण कला विलास सँग विराजी हुई हैं, श्रीप्रियतम की वक्ष स्थली पर।
रस भँवर श्रीप्रियतम इस सुरँगीनि कुमुदिनी के साथ नवल नवल रस भाव से अनुरागित हो नवल नवल श्रृंगार का रसपान करते अघाते नहीं हैं। इस कुमुदिनी रस कलिका का सुरँग रँग, क्षण क्षण नवीन , क्षण क्षण प्रफुल्लित होता जाता है, वहीं रस भँवर इस कुमुदिनी के रस पान हेतु तृषातुर ह्वै जावे।
बलिहारी ! बलिहारी इस रस रँगीनि ललित जोरि की। बलिहारी ! बलिहारी इस ललित श्रृंगार की। रस की लालसा बढ़ती जावे .....रस वर्षण , रस उमगन की बलिहारी ! चलो री गावें *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*
*माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*
*माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*.........
रुके ही न यह ललित रस वर्षण.....
Comments
Post a Comment