माया काहे नचाय

हरिहौं माया काहे नचाय
होऊँ तौ तुम्हरी वस्तु नाथा बाँवरी दियो भुलाय
जेई कारण माया कौ मौको मिले लेय भरमाय
हा हा नाथा होऊँ तेरौ जन देरी परै समझ आय
अबहुँ पकरौ डोरी नाथा मेरी माया हाथ न दीजौ
अपनी वस्तु चरणन राखो क्षणहूँ बिलग न कीजौ

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