मोटी गाँठ

हरिहौं मोटी गाँठ परी
विषय वासना की गठरी बाँवरी दिन दिन और भरी
कोऊ उपाय न करिहै बाँवरी खोल देवै गाँठ सारी
भरत भरत निशिबासर बाढ़ै होवै क्षण क्षण भारी
हा हा नाथ खोलो मोरी गठरी तुम बिन कौन मुरारी
अबहुँ अकुलात रही बाँवरी नाथा कल्मष हर लो सारी

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