विषय कौ कीट
हरिहौं भयौ विषय कौ कीट
भोग वासना दिन दिन बाढ़ै रह्यौ ढीट कौ ढीट
कान न कीन्हीं सतगुरु की बातां सगरौ दी बिसराई
भोग वासना की लगी चटपटी कौन विध बनत बनाई
हा हा नाथा भजनहीन फिरूँ बुद्धिहीन बलहीना
बाँवरी जन्म गमाई बिरथा कबहुँ हरिनाम न लीन्हा
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