काहे देह दई
हरिहौं बाँवरी काहे देह दई
भजनहीन बोझा होय धरती कौ काहे न जग सौं गई
बिरथा स्वासा स्वासा कीन्हीं मोल कछु न पाई
मानुस देह अमोलक कौ मूढ़ा कोऊ न मोल लगाई
बिरथा बिरथा जीवै बाँवरी तू होय धरती कौ बोझा
काम क्रोध मोह मत्सर उरझी भजन कौ बनै न सोझा
हरिहौं बाँवरी काहे देह दई
भजनहीन बोझा होय धरती कौ काहे न जग सौं गई
बिरथा स्वासा स्वासा कीन्हीं मोल कछु न पाई
मानुस देह अमोलक कौ मूढ़ा कोऊ न मोल लगाई
बिरथा बिरथा जीवै बाँवरी तू होय धरती कौ बोझा
काम क्रोध मोह मत्सर उरझी भजन कौ बनै न सोझा
Comments
Post a Comment