करो छुटकारा
हरिहौं आपहुँ करौ छुटकारा
बुद्धिहीन मतिहीन बाँवरी कबहुँ न नाथ बिचारा
कौन मोल होय मानुस देहि मिली चौरासी पाछै
खोटी कीन्हीं कमाई सगरी बाँवरी कर्म न कीन्हें आछै
भोग लालसा तेरी दिन दिन बाढ़ी दूनो दूनो सवाई
जगति भँवर तेरी नैया डूबी बाँवरी देत न बनत चुकाई
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