सुधि लीजो निज जन की

हरिहौं सुध लीजो निज जन की
भजनहीना फिरै बाँवरी दिन दिन सुनो कछु निर्धन की
तुम होवो साँचो नाथा जी हमरै हमहुँ काहे होय निर्धन
काहे मन इत उत भाजै हरिहौं आपहुँ करौ जतन
निर्बल मतिहीन होवै बाँवरी हरिहौं कछु बल न राखै
पुनः पुनः भाजै हिय वीथिन माँहिं मूढ़ा विष्ठा चाखै

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