साँचो घर

हरिहौं साँचो घर न बैठाई
हिय निकुंज नाँहिं कीन्हो अपनो विष्ठा रही फैलाई
नित नित भोग जगति के बाढ़ै कीन्हीं विष्ठा ढेरी
कहाँ पधराउँ तुमको नाथा हिय माया जगति घनेरी
आपहुँ कस कस चपत लगावो हरिनाम सौं बनै मृदुताई
निर्बल बाँवरी बल न नाथा करि हाथ लेयो आपहुँ बचाई

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