हँस बने न कागा
हरिहौं हँस बनै नाँहिं कागा
हँसा मोती चुग चुग राखै तेरौ हिय भोग विषय पागा
हँसा पकरै मोती हरिनाम कौ बिरथा नाँहिं सुहावै
बाँवरी तू भई कागा कारी क्षण क्षण विष्ठा पावै
कागा भयौ न हँसा कबहुँ सौ मल साबुन लगावै
बाँवरी नाम न साँचो लीन्हीं नित भोगन हिय रमावै
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