हम प्रपन्च कौ ढोल
हरिहौं हम प्रपन्च कौ ढोल
पीट पीट बजावै निशिदिन खुलत खुले न पोल
बाढ़त ढोंग प्रपन्च निशिबासर क्षण क्षण होवै गाढ़ै
हा हा नाथा अबहुँ अकुलाऊँ भव ताप हिय बाढ़ै
दग्ध करै हिय भव तृष्णा कौन भाँति हिय सरसावै
भोग विषय की पुतरी बाँवरी कैसो प्रेम रस पावै
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