भोग विषय

हरिहौं भोग विषय भ्यै गहरे
भजन बिना न कल्मष नासै भक्ति भाव हिय न ठहरे
जन्म जन्म कौ भोग मेरौ कबहुँ भोग विषय सब छूटै
भर भर नाथा हिय भोग रखाई कबहुँ मेरी गगरी फूटै
आपहुँ कछु सुधार करौ नाथा बाँवरी अधम बल न कोय
निर्बल कौ बल तुम्हीं नाथा पुकारे बाँवरी करै हाथा दोय

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