दया कौ सिन्धु
हरिहौं तुम हो दया कौ सिन्धु
बून्द बून्द भरौ मेरी गागर हमरी प्यास होय बिन्दु
साँची प्यास न लागी हरिहौं झूठी जगति की लागी
नाम अमृत न पीवै बाँवरी पुनि पुनि जगति रहै भागी
भोगन कौ होय सकल पसारा हरिहौं दया करौ सम्भारो
नाम की नाव बैठावो साँची हरिहौं आपहुँ पार उतारो
Comments
Post a Comment