बिगरी दशा
हरिहौं बिगरी दसा हमारी
खावत पीवत सोवत रहै मग्न बाँवरी पैर पसारी
नाम भजन कबहुँ सुधि न लेवै आवै निद्रा गहरी
जगति कान दिये राखी मूढ़े भजन कथा कौ बहरी
पुनि पुनि भव निद्रा परै बाँवरी नाँहिं होय भजन सौं काम
बिरथा कीन्हीं स्वासा स्वास न दियो मानुस तन कौ दाम
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