हिय पाथर

हरिहौं हिय पाथर सौं कठोर
नाम लिए कबहुँ द्रवित भ्यै भूली साँझ अरु भोर
भोग पकावै निशिबासर खावत पीवत समय गमावै
हरिनाम की न लगै चटपटी बाँवरी बिरथा जन्म बितावै
हिय न साँचो लोभ नाम कौ जगति लोभ रहै बाढ़ै
नाम की साबुन कबहुँ मल धोवै भोग विषय के गाढ़ै

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