कोउ बाता

हरिहौं कोऊ विध बनै न बाता
जगति भोग रहै रमी बाँवरी भजन न कबहुँ सुहाता
खावन पीवन सोवत गयौ सगरौ जीवन मूढ़ा दई गमाई
लोभ न कीन्हीं भजन सत्संग कौ भोगन विष्ठा पाई
बाँवरी बनी विष्ठा की ढेरी आपहुँ देयो अगन लगाई
धक धक कर जलै सगरौ बाँवरी नेकहुँ नाय लजाई

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