भोग छुटै
हरिहौं कौन भाँति भोग छूटै
जड़बुद्धि अति पामर जीवा किस विध प्रेम धन लूटै
हमरो कोऊ बल न नाथा अति मोटी भोगन जंजीर
बाँवरी बिलपत रहै बंधत ही सरसावै हिय जब पीर
काटो नाथा क्लेश सब हिय कै करो प्रेम रँग रँगाई
दुर्लभ मानुस देह कौ मोल बनै बाँवरी बिरथा जन्म गमाई
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