हरिहौं बाँवरी फिरे जगत
हरिहौं बाँवरी फिरै जगति बौराई
भोग वासना की पुतरी मूढ़ा साँचो नाथ बिसराई
साँचो नाथ बिसराई जन्मन सौं पुनि पुनि फिरत चौरासी
हिय शुष्क कठोर पाथर सौं कौन विध आवै प्रेम रासी
बिनु हरि प्रेम बाँवरी तू जन्म जन्म बिरथा गमावै
अबहुँ जाग भव निद्रा सौं मूढ़े कौन विध तोहे जगावै
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