प्रियतम का श्रृंगार 2
*श्रीप्रियतम का श्रृंगार*
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श्यामसुन्दर अब गोचारण के बहाने घर से निकल अपनी प्रियतमा से मिलन को नित्य आतुर। यूँ तो उनका एक क्षण का भी विरह नहीं है परन्तु लीलावत नेत्रों में भर भर भी दर्शह्न को विव्हल । आज गोचारण को निकल आये हैं, यमुना पुलिन पर जैसे ही पहुँचे श्रीराधा को कदम्ब के नीचे प्रतीक्षारत देख रहे हैं। आहा!हृदय आह्लादित हो रहा है जैसे। निहारते निहारते पुलिन पर आ जाते हैं। श्रीराधा वृक्ष से आगे आकर यमुना पुलिन पर ही उनके समक्ष बैठ गयी हैं। निहारते निहारते जैसे नेत्र ही तृप्त न हो रहे जैसे। सखा गण को श्रीराधा सदृश्य कहाँ हो रही है। सहसा श्यामसुन्दर श्रीराधा की चरण रेणु उठा उठा अपने शीश पर धर रहे हैं। सखा देख देख हँस रहे हैं, कान्हा आज तोय क्या होय गयो, जेई बालू उठाय उठाय धर रह्यौ। श्यामसुंदर तो आह्लादित हो रहे, उस रेणु में स्नान कर।अनुभव कर रहे हैं जैसे वह रज नहीं है वरन वह श्रीप्रिया जु के आलिंगन में ही हैं। धीरे धीरे अपनी केलि स्मृति में खोए जा रहे हैं। श्रीप्रिया जु उन्हें सन्मुख सदृश्य हो रही , उन्हीं के आलिंगन में .........
सखा देख रहे आज तो कान्हा बौराय गयो। सारी बालू सीस पर धर ली है, बालू कण मुख पर झिलमिला रहे हैं, आह !!यह हुआ है *प्रियतम का श्रृंगार* श्रीराधा जु की चरण रेणु ही आज प्रियतम का श्रृंगार हो चुकी है।इतने में सखा वहां आ गए। मधुमंगल जोर जोर से हँस रहा है, कान्हा!!का भयो आज। श्यामसुन्दर की तो दशा ही विचित्र हुई जा रही है, सन्मुख प्रियतमा, भीतर प्रियतमा, प्रियतमा आलिंगन आह!! क्या कहें। परन्तु लीला परायण बोल उठे, मधुमंगल आज देवी दर्शह्न भयौ है। जेई ते नेत्र नाय खुल रहे।भीतर की कौन जाने भीतर क्या उन्माद उठ रहा है।
मधुमंगल जोर जोर से हँसता है। *चोरन को देवी दर्शन भयौ* ।सभी सखा जोर जोर से हँसने लगते हैं।कान्हा तू अभी इस ब्राह्मण की सेवा कर। इसी सेवा का फल कभी तुझे देवी दर्शह्न रूप में मिलेगा।मेरी आशीष सदा तेरे साथ है। सभी सखा पुनः खिलखिलाने लगते हैं। क्या जानते हैं कि जिसे कभी देवी दर्शह्न का आशीर्वाद दे रहे हैं यह तो इनकी अभिन्न प्रियतमा, इनकी प्राण स्वरूपा श्रीकिशोरी जी ही है, जिससे भिन्न इनका कोई अस्तित्व है ही कहाँ। बाहर सखावत अपने सखाओं सँग लीला कर रहे हैं, परन्तु श्रीप्रिया की चरण रेणु से विभूषित प्रियतम भीतर श्रीप्रिया से नित्य आलिंगित हैं।क्रमशः
जय जय श्रीश्यामाश्याम
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