प्रेमी न मोहन न

प्रेमी
न मोहन न
मैं प्रेमी नहीं
मुझे कैसे हुआ प्रेम
प्रेम तो समर्पण होता है
यदि मुझे प्रेम होता
तो क्या मेरा हृदय यह सब अनुभव करता
यह सब काम क्रोध मोह के आवेग
प्रेमी को सुधि कहाँ
उसके पास हृदय ही नहीं अपना
उसके हृदय में तो तुम भरे रहते
जब तुम ही रहते तो फिर शेष कुछ रहता क्या
तुम तो सब हरण कर लेते
पूरा हृदय ही तुम्हारा होता
और मेरे हृदय में
अभी कितनी मलिनता
वासनाओं के झोंके क्यों हिला जाते मुझे
आह!!
यह हृदय प्रेमी नहीं
प्रेम शून्य है
प्रेम विहीन
सत्य है मोहन
पूरा सत्य
न मैं प्रेमी
न ही प्रेम
अपनी ओर देखूँ
तो लजा ही जाऊँ
क्या कर पायेगा यह हृदय
तुमसे सच्चा प्रेम
क्षण भर को ही
देखो मेरे क्षण क्षण के स्वांग को भी
सच न मान लेना
सच यही है
नहीं हुआ प्रेम
नहीं हुआ
अभी तक
नहीं हुआ

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