हरिहौं देयो प्रेम
हरिहौं देयो नाम कौ प्रेम
बाँवरी मूढ़ा जग वीथिन डोले न जाने भजन अरु नेम
निर्धन रही जन्म जन्म सौं न नाम कौ धन संचय कीन्हीं
साँचो लागे षडरस मूढ़े बाँवरी कबहुँ हरि शरण न लीन्हीं
जग वीथिन फिरै बौराई तोहे लगै कबहुँ भजन कौ स्वाद
कबहुँ होय तेरौ भव भोग छुटकारा हिय उठै प्रेम उन्माद
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