हरिहौं विषय भोग अति गाढ़े
हरिहौं भोग विषय के गाढ़ै
बाहर स्वांग बनावै झूठै भीतर भोग लालसा बाढ़ै
भोग लालसा बाढ़ै निशिबासर कबहुँ भजन लगै नीको
भजन विहीन फिरत बाँवरी मूढ़ा स्वाद भजन कौ फीको
जो न स्वाद भजन कौ पाई बाँवरी बिरथा जन्म गमाई
पसु चौपाया ज्यूँ विष्ठा डोले बाँवरी काहे जननी जाई
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