हरिहौं हिय

हरिहौं हिय पाथर सौं कठोरा
कल्मष क्लेश सब भरे जन्म सौं लगै जगति कौ दौरा
लगै जगति कौ दौरा क्षण क्षण जबहुँ हाथ सुमिरिनि राखै
नयन न निरखै मधुर छवि कौ भोग जगति कौ भाखै
विषय भोग अति गाढ़ै हरिहौं होय कौन भाँति छुटकारा
क्षण न रमैं हिय नाम भजन कौ बाँवरी जन्मन जन्म बिगारा

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