तुम्हें भुलाने की

---------तुम्हें भुलाने की -------

तुम्हें भुलाने की चलो आज सज़ा दो कोई
दिल है पत्थर सा मेरा आंख न कभी रोई

सच तो यह है कभी दिल से न पुकारा मैंने
जो पुकारा है कभी दूर तुमसे न रहा कोई
तुम्हें भुलाने की.....

फिरते हैं आँख चुराते हुए खुद से ही हम
हम भी हम ही न रहे कुछ पल था उतरा कोई
तुम्हें भुलाने की.......

चंद नग्में चंद गज़लें सज गयी जाने कैसे
अश्कों की कभी एक माला भी न हमने पिरोई
तुम्हें भुलाने की.......

कहते हैं लफ्ज़ होते हैं आईने दिल के
मेरे आईने में दिखा न मुझे अक्स कोई
तुम्हें भुलाने की चलो आज सज़ा दो कोई
दिल है पत्थर सा मेरा आंख न कभी रोई

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