हरिहौं कोऊ विधि बनत न बात

हरिहौं कोऊ विधि बनत न बात
जो होतौ बल मेरौ कबहुँ कछु बिगरी बनत बनात
मेरौ बल न कछु होय हरिहौं फिरूँ यों ही ढोल बजात
जौ देखूँ कृपा कृपानिधि तुमको पुनि पुनि रहूँ सकुचात
हा नाथा बलहीन बाँवरी सब तुमसौं ही कहत सुनात
तुम्हरै बिन न कोऊ नाथा अबहुँ कौन द्वारे जात

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