इतना बता दे
इतना बता दे आज मेरे दिल को आराम क्यों है
है गर यह इश्क़ समन्दर तो रुकने का काम क्यों है
ठहर जाए जो कभी ऐसा तो इश्क़ न हुआ
हसरत मेरे दिल की रूकी अब तमाम क्यों है
इतना बता दे......
हैं अश्क़ आंखों में और होठों से आहें निकलें
पीकर भी प्यासा करे इश्क़ का जाम क्यों है
इतना बता दे.......
तुम ही लिखते रहे अपने ही लफ़्ज़ों में सब
आया आज भी फिर इश्क़ का पैगाम क्यों है
इतना बता दे.......
नहीं हुआ अब तलक मुझे तुमसे इश्क़ कोई
झूठी बात पर भी इतना एहतराम क्यों है
इतना बता दे.......
चलो लौट जाओ इस गली से कुछ न पाओगे
अपनी तो इश्क़ की बस्ती ही नीलाम क्यों है
इतना बता दे.......
मत खेलो अब ओर मेरे दिल से साहिब
नहीं इश्क़ झूठा ही चर्चा सरेआम क्यों है
इतना बता दे आज मेरे दिल को आराम क्यों है
है गर यह इश्क़ समन्दर तो रुकने का काम क्यों है
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