गुल खिले हैं

गुल खिले हैं जिसने दिल को गुलज़ार बना रखा है
मुद्दत से वीरान था उसको बहारों से सजा रखा है

यूँ तो महबूब ही हैं बस मेरे दिल मे छिपे
लोगों ने जाने क्यों उनका नाम खुदा रखा है
गुल खिले हैं.....

होश में रहकर भी बेखुदी की बात करते हैं
है नशा मोहबत का जिसने होश चुरा रखा है
गुल खिले हैं......

सच तो यह है कि इश्क़ के काबिल नहीं हम
जाने क्यों उसने जाम पर जाम पिला रखा है
गुल खिले हैं.....

न था बस हमारा की याद करें पल भर उन्हें
उनके ही इश्क़ ने बस दीवाना बना रखा है
गुल खिले हैं जिसने दिल को गुलज़ार बना रखा है
मुद्दत से वीरान था उसको बहारों से सजा रखा है

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून