मेरे लफ्ज़
जब दिल मे तुम हो तो लफ्ज़ क्यो है
तुम्हारी मोहबत के किस्से ख्वाहिश है तुम्हारी ही
लिखा वह जो उतरा मुझमें मेरा भी न होकर
बनता ही गया उतना जितनी उतरी मोहबत तुम्हारी ही
यूँ तो बेकरार थे मुझमे पूरा सा होने को
उतना ही सिमटा भीतर जितनी ख्वाहिश हमारी ही
मेरी कहाँ है हस्ती मैं लिख पाऊँ कुछ ज़रा सा
मेरी जुबाँ से खेलना बस साजिश तुम्हारी ही
भीगते से रहते हैं थोड़े और थोड़े और हम
नम सा रखती है हमको यह बारिश तुम्हारी ही
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