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*राजत प्रियतम प्यारी अहो फूल बंगले में*
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सखी री ! जेई फूल फूलनि कौ मधुर मधुर रस गान जो तेरी वाणी से भीतर जावै री, ऐसो लागै कुछ क्षण जेई फूल फूलनि सँग ही रहूँ री। जितनो यह गान भीतर उतरै री उतनो ही लोभी करै री मोय । जेई फूल फूलनि की मधुर मधुर बतियाँ ऐसो लगै री फूलन की कुञ्ज से मधु टपक रह्यौ बूंद बूंद। जेई मधुर मधुर फूलन की मधुर मधुर गायन कौ मधुर स्वाद होवै री, मधुर सुगन्ध होवै री। न जानू मैं , मेरौ कछु सामर्थ्य ही नाय होवै री। मेरौ हिय भर भर आवै री , जेई फूल फूलनि को गान और और सुनु री। जो मोय सुना देवे कछु क्षण तोरी बलैयां लूं री।साँची कहूँ तो लागै जेई फूल फूलनि लोभ देय रहे री, तू कहती रह्वै , मैं न सुनु, साँची मैं न सुनूँ जेई सुन सुन फूलि जावैं री। मैं कहाँ समेट सकूँ री या मधुरता के सागर को। जितो तेरी वाणी भरती रह्वै री उतो ही अनुभव कर पाऊँ री। न कबहुँ जेई फूल फूलनी गायन रुकै री , तेरे सँग बैठ निहारूँ री जेई फूल फूलनि रँग रँगीली जोड़ी को।
जेई फूल फूलनि को आभूषण , वस्त्र सब फूलन को धराये री सखियन अलियन ने। जेई इतो कोमल होय री फूल फूलनी को फूलन में ही धरानो होय।पर साँची कहूँ री सखी मोय फूलनि को आभूषण में फूल ही नाय लगै री। लगै जेई फूलनि को जाके प्रियतम ही श्रृंगारित कर रहे री। जेई फूलनि की मधुरता सौं मधुर मधुर होय जाय रहे री। जेई की ग्रीवा पर जो फूलमाला लटक रही न जेई कोऊ फूल की नाय होय री , जेई के प्रियतम ही गलबहियाँ दिए रह्वै री। दोऊ फूल फूलनि सँग सँग परस्पर अड़े रह्वै री, तबहुँ अलियन को सुख होय री। प्यारी जु को जेई फूलमाला सौं ऐसो अनुभव होय री आहा!मेरे प्रियतम ही आलिंगन को सुख ले रहे री। जेई उन्मादिनी अपने ही फूल की सुगन्ध से भरी भरी रह्वै री। प्रियतम ही याके वस्त्र आभूषण होय जावैं री। सब फूलन में प्रियतम का ही कोमल हिय होवै तबहुँ तो प्यारी को स्पर्श कर सके। प्यारी के श्रृंगार की कोई वस्तु प्रियतम से अभिन्न ही न हो सकै री। जेई फूल जो प्यारी जु को सजाय रह्वै री , जेइ प्रियतम के हृदय फूल के ही कोमल कोमल भाव होवै री। प्रियतम के स्पर्श के बिना जेई फूलनि कुमलाय जावै री। सभी फूलन को प्रियतम के हृदय के अनुराग में डुबोय डुबोय फूल सौं कोमल होय ही प्यारी जु को स्पर्श मिले री। जेई फूलनि कौ मधुर मधुर श्रृंगार प्रियतम हृदय की ही मधुर मधुर लालसा होय री, अपनी फूलनि कौ फूल होय रह्वै की। अन्यथा कोऊ फूल की सामर्थ्य न होवै जो जेई कोमलता का स्पर्श कर सके , याको श्रृंगार कर सके री।
जेई फूलनि को सिंगार सौं फूलनि की सोभा न होय री , जेई तो इन फूलन को भाग , होवै री जो फूलनि को छुये मधुर मधुर होय जावै री। जेई की कोमलता स्पर्श करते न बनै, निहारते न बनै, कहते न बनै। जेई फूलनि को सिंगार आहा!! कोऊ शब्द न निकले री । सखी !!तू कही न मोय जेई फूल बंगले को निहारन कौ। मैं अपनी ओर देख देख लजाय जाऊँ री।ऐसो नेत्र ही न री मोपै जो निहार सकूँ री। तेरी वाणी को सुन ही भर भर लेयूँ जेई फूल फूलनि को भीतर। कबहुँ तेरी वाणी थकित न होय जावै री, कितनो सुख देय री , भर भर राखै री जेइ फूल फूलनि को हिय माँहिं। जैसे ही वाणी रुकै न भीतर व्याकुलता फूट पड़े री , न निहार पाऊँ , हाय मेरे फूल फूलनि अबहुँ मेरे हिय में बैठे फूल रहे थे , जैसे ही फूल फूलनि को क्षण भर भी दूर पाऊँ सखी री , भीतर सौं छटपटाऊँ री। साँची कहूँ तेरी वाणी को गायन ही जेई फूल फूलनि को रस भरै री, अबहुँ न रह्यौ जावै री , ऐसो लोभ लगाय दियो री जेई फूल बंगले को निहारन को। अबहुँ न निहार पाऊँ री, न बोल पाऊँ नेत्र ही झिलमिल करै री, जेई फूल फूलनि कौ छुपाय लूं भीतर , मुख से गाती रहूँ.....
राजत प्रियतम प्यारी अहो फूल बंगले में
राजत प्रियतम प्यारी अहो फूल बंगले में........
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