युगल नाम

----------*युगल नाम*---------
श्यामसुन्दर अपनी प्राण प्रियतमा का नाम अपने अधरों पर विराजित वंशी में उतार रहे हैं। हृदय विरह वेदना से ऐसा छेदित सा हुआ है मानो हृदय का सम्पूर्ण आह्लाद ही वंशी में भर भर रव रव में भर अपने प्राण भर भर राधा जु की स्मृति में खोए हैं। राधा राधा राधा.......नेत्रों से अश्रुधारा बह उठी है। बहुत देर तक श्यामसुंदर ऐसे ही विरहातुर हुए यमुना पुलिन पर वृक्ष से पीठ लगाकर बैठे हैं।श्रीप्रिया जी उनकी यह स्थिति वृक्ष के पीछे से मौन होकर देख रही हैं। कुछ समय पश्चात सहसा उठे और श्यामसुंदर श्यामसुंदर पुकारते हुए दौड़ने लगते हैं।जैसे स्वयम को विस्मृत कर बैठे हैं कि वह श्यामसुंदर हैं राधा नहीं हैं।
  
    हा श्यामसुंदर!हा श्यामसुंदर!कहकर इधर उधर भाग रहे। वृक्ष वल्लरियों से लिपट लिपट रो रहे हैं। उनको देख प्रिया जु भी व्याकुल हो उठीं। उन्हें वह श्यामसुंदर न दिख जैसे स्वयम को ही देख रही हैं, श्यामसुन्दर के लिए विलाप करते हुए। श्रीप्रिया भी उसी क्षण हा श्यामसुंदर!हा श्यामसुंदर!कहकर व्याकुल हो गयी।

  सखियों मंजरियों के लिए तो यह कठिन स्थिति हो गयी है। पहले ही वह अपनी बाँवरी बनी रहती स्वामिनी प्रिया जु को श्यामसुंदर की बात बना बना कर उनकी स्मृति बनाये रखती हैं तब कहीं जाकर वह धैर्य रख पाती हैं अभी श्यामसुन्दर भी राधा होकर ऐसे व्याकुल हो रहे। ललिता जु दौड़कर श्यामसुंदर की बांसुरी उठाकर बजाने लगती हैं और सभी मिलकर युगल नाम गाने लगती हैं।

राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम
श्यामाश्याम श्यामाश्याम श्यामाश्याम श्यामाश्याम

श्यामा श्याम दोनो ही अचेतन हुए पड़े हैं।दोनो के कानों में यह नाम भीतर उतरता हुआ जैसे जैसे चेतना भर रहा है, युगल एक दूसरे को सँग सँग अनुभव करने लगते। दोनो के हृदय एक ही प्रेम लहरी से तरंगायित हो रहे हैं। दोनो एक दूसरे को आलिंगन में ही अनुभव कर रहे।

   मन्द मन्द चलती हुई पवन श्रीप्रिया जु की अंग गन्ध श्यामसुंदर के भीतर उतरती है तो वह चेतन होने लगते ।दौड़कर अपनी प्यारी का आलिंगन करते हैं। युगल नाम का गायन दोनो के हृदय को बहुत आनँद दे रहा है।

राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम
श्यामाश्याम श्यामाश्याम श्यामाश्याम श्यामाश्याम

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