गुरु चरण विनय

**श्रीगुरु गौरांगो जयते**

प्रथम प्रणाम श्रीगुरु चरण जिन दियो नाम कौ ज्ञान
बिन नाम हरिभजन बिन बाँवरी जीवन पशु समान

श्रीगुरु ज्ञान दियो साँचो तू होय आनन्द कौ मूल
साँची सेवा जबहुँ मिले फिर कटै हिय कौ सूल

जिन प्रकटाया तू आनन्द कन्द काटै जगति कौ फन्द
कलुषित हिय जन्म जन्म कौ कटै सभी दुख द्वन्द्व

दौरि परयो हरिमार्ग पे करै पुकार फिरे अकुलात
अग्नि हिय साँची नाम की बनै श्रीगुरु कृपा तै बात

श्रीगुरु की जबहुँ कृपा भई जान्यो मैं हरि कौ अंश
नाम दियो अमोलक भजन कौ हरिदास गौर हरिवंश

रसिक अनन्य होय घाट भिन्न एकै नदिया प्रेम कौ मूल
भेद कोऊ न राखिये तबहुँ खिले युगल प्रेम कौ फूल

नाम वाणी की कृपा बनै रसिक चरण धूरि भाल चढ़ाय
मिटे सन्ताप जन्म जन्म कै तबहुँ प्रेम हिय खेल खिलाय

कृपा मिली चहुँ ओर सौं श्रीगुरु वाणी और नाम
शुद्ध भक्ति हिय उपजै जब मिले नाम कौ पूरो दाम

दाम जेई हरिनाम कौ लेयो स्वासा स्वास हरिनाम
नाम रूप हरि आपहुँ मिलै तबहुँ हिय होय निष्काम

भोग वासना मद मत्सर सबहुँ कृपा कोर देय नसाय
नाम जपै नाम रुचि उपजै हिय नाम ही रूप खिलाय

बाँवरी मुख हरिनाम रख हिय राख श्रीगुरु चरणन माँहिं
वाणी श्रीगुरु अनमोल दई हिय आनन्द नाँहिं स्माहिं

आखर आखर गुरूदेव कौ पोषण करै हिय प्रेम बेलि
सेवत श्रीगुरु चरणन सौं हिय करै श्रीयुगल केलि

भेद न हरि गुरु कीजिये श्रीहरि प्रकटे रूप एहि धार
श्रीगुरु चरणन प्रीति ही बाँवरी होय सकल भक्ति कौ सार

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून