हिय पीर
हरिहौं तुम जानो हिय पीरा
मीन ज्यों फन्द शिकारी परिहै बिलपत होय अधीरा
हरिहौं जन होऊँ तुम्हरौ ही न देखो मेरी अधमाई
भव सिन्धु की माछरी हरिहौं सिन्धु रही समाई
हा हा हरिहौं शिकारी माया कौ मोय झपटै खींचे
हरिनाम सौं करौ सम्भराई नाथा बाँवरी परै सिन्धु बीचै
Comments
Post a Comment