छटे सगरौ व्योहार

हरिहौं कबहुँ छूटै सगरौ ब्यौहार
नाम भजन ही जीवन बनिहैं नाम भजन कौ प्यार
जगति भोग वासना गाढ़ी हरिहौं आपहुँ काटो भव फन्द
नाम भजन की नाव बैठावो मिटै सकल दुख द्वन्द
कबहुँ बाँवरी नाम रस पावै कबहुँ प्रेम सिन्धु डूबै
लौटत पुनि पुनि जगति भाजै न भोग रस पावती ऊबै

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