अवगुण नित चाखै

हरिहौं हम अवगुण नित चाखै
नाम भजन की रीति न जानी जिव्हा नाम न राखै
जिव्हा नाम न राखै हरिहौं हिय न चटपटी साँची
ज्ञान की बात करै पढ़ पोथी बाँवरी हिय प्रेम न राँची
हा हा नाथा भोगी जन कौ आपहुँ लेयो उबारा
बाँवरी भोगी ते अति भोगी आपहुँ करौ सम्भारा

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