मुझसे मेरे साहिब

मुझसे मेरे साहिब ने नकाब कर रखा है
सच मुझे इश्क़ नहीं उसने बेहिसाब कर रखा है

मैं खुद हैरान हूँ उसकी फितरत देख कर
मेरा हर सच उसने ख्वाब कर रखा है

सुनो मुझे इश्क़ नहीं तुमसे वह झूठ मेरा था
मेरे हर कांटे को उसने गुलाब कर रखा है

बेवफ़ाई मेरी रग रग में भरी मुद्दत से ही
एक झूठ को सच उसने बेपनाह कर रखा है

अब हालत यह मेरी है कि साँसे भी बोझ हुई
क्यों तेरा नाम भी सांसों से जुदा कर रखा है

मुझमें हिम्मत भी कहाँ है जो पल भी पुकार सकूँ
उसने ही अपने इश्क़ का सैलाब कर रखा है

क्यों इतना इश्क़ है तुमको मेरी बेवफ़ाई के बाद भी
कहने को भी लफ्ज़ नहीं यूँ लाजवाब कर रखा है

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