कबहुँ फूटै गगरी

हरिहौं कबहुँ फूटै झूठो गगरी
बाँवरी भरि भरि राखै निशिदिन भोगन विष्ठा सगरी
जानै न काँची गगरी माटी कौ पुनि पुनि रहै सजाई
माटी फूटै माटी ही निकसै दिये सब भाँतिन भुलाई
माटी कौ ब्यौपार सगरौ झूठो साँचो हरिनाम कौ धन
छांड झूठो ब्यौहार बाँवरी हरिनाम बिना तू निर्धन

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