भोग भयौ
हरिहौं भीतर भोग भयौ
भजनहीना फिरै बाँवरी हिय ऐसो गाढो भव रोग रह्यौ
ऐसो रोग की दवा नाम ही बाँवरी नाँहिं कछु उपा करयौ
नित नित बाढ़ै भोग लालसा तेरी भोगन ऐसी प्रीति भरयौ
हा हा नाथ कबहुँ गगरी फूटै नित्य नव मद अहंकार करयौ
बाँवरी बिरथा कीन्हीं जन्मन पुनि पुनि फेर चौरासी परयौ
Comments
Post a Comment