गारि के योग
हरिहौं हम गारि कै योग
लोभ वासना के कीट हम हरिहौं ,छुटै कबहुँ भोग
नाम भजन न बनै जन्म सौं, लग्यो मद कौ रोग
भजन बनै न स्वासा स्वासा ,बाँवरी हिय उठै न सोग
बाँवरी तू सूकरी सौं बुरी निशिदिन भोग पकावै
कौन दिन जागै भव निद्रा सौं भजन करै दिन जावै
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