भव पीर

हरिहौं कबहुँ छुटै भव पीर
कबहुँ वासना हिय की नासै नयनन बरसै नीर
कबहुँ भजन की लगै चटपटी कबहुँ कंगाली जावै
निर्धन बाँवरी जन्म जन्म सौं हरिनाम न कबहुँ सुहावै
हा हा नाथा न देखो ढिठाई तुम होय पतितपावन
साँचो करो नाम हरि अपनो पतितन कौ तुमहीं रखावन

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