कौन समय

हरिहौं कौन समय तुझे ध्याया
बचपन खेलत समय गयो सगरौ, खावत पीवत बिताया
शिक्षा लीन्हीं सब माया की, बड़ी बड़ी पोथी बाँची
धन की बेलि रही फिर बाढ़ै ,न होय कमाई साँची
अबहुँ लग्यो हाय मैं कँगाला हरिहौं ,सगरौ जन्म गमाई
झूठी सारी पोथी बाँची जन्म भर ,झूठी कीन्हीं बाँवरी कमाई

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