हिय कपटी

हरिहौं हिय कपटी अति घोर
लोभ मद मत्सर लालसा आदि हिय बैठे रहै चोर
कपट कौ मेरौ सुभाव जन्मन सौं पाई न कोऊ ठौर
हरिनाम सौं रहै कँगाल बाँवरी फिरै माया ही चहुँ ओर
कोऊ विधि सौं बात बनै न भयो तमस घनघोर
हा हा नाथा कीजौ अबहुँ निकासी विनय करूँ करि जोर

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून