कौन भाँति दसा सुधार
हरिहौं कौन भाँति दसा सुधरै
विषयन भोग लगै अति गाढ़ै कौन भाँति मदिरा उतरै
विषय लोभ की गठरी भारी बनत न बनै चुकाई
आपहुँ नासो भव बन्धन हरिहौं होय रही जगति हँसाई
हा हा नाथा अबहुँ बिलपत हूँ कौन विधि यह रोग नसावै
कौन घड़ी भजन सुधि जागै बाँवरी नाम हरि कौ गावै
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