भव पीर नासै

हरिहौं कौन विध भव पीरा नासै
नाम भजन की ज्योति बिन हरिहौं सगरौ अंधेरा भासै
पड़ी अन्धकूप बाँवरी हरिहौं हिय भव रोग कौ ताप
नाम की शीतल पड़ी फुहारी कबहुँ मिटे सकल संताप
कबहुँ होय भव सिन्धु निकासी हरिहौं मोय बचावो
हा हा नाथा पड़ी अकुलाऊँ मोय भजन चटपटी लगावो

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून