भजन हीना

हरिहौं भजनहीना मेरौ सुभाव
कबहुँ बात बनै भजन की साँची हिय न उपजै चाव
रसिक जना की बातां सुने न बाँवरी राखै दूर दुराव
कोऊ विध उपजै हिय भक्ति कोऊ विध उपजै भाव
कबहुँ हिय लगै हरिनाम चटपटी कबहुँ नाम रस पावै
बिरथा कीन्हीं स्वासा स्वासा एहि जन्म अमोल गमावै

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