बाँवरी भई चमार

हरिहौं बाँवरी भई चमार
साज सजावै चाम कौ निशिदिन भोगन कौ ब्यौहार
नाम भजन की रीति सौं रीती मद मत्सर भोग पसार
हरिहौं कस कस चपत लगावो आपहुँ करौ सुधार
कबहुँ छुटै भोग जगति कै हिय बहै प्रेम रस धार
नाम की पैज बैठावो हरिहौं बाँवरी पावै नाम कौ सार

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