हरिहौं कबहुँ हिय जले

हरिहौं कबहुँ हिय जलै ज्यूँ काठ
षडरस अबहुँ बड़ौ सुहाय भावै जगति कौ ठाठ
भोगन रस कौ लोभी बाँवरी बनै कौन विधि बात
अवगुण की होय खान बाँवरी क्षणहुँ नाय सकुचात
कौन विधि भजन लौभ हिय आवै भूलै जगति को साथ
नाथ तिहारौ शरण परि न बाँवरी पापन सौं सकुचात

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